विकास राय
गदरपुर। आज मास्साब का जन्मदिन है। मास्साब माने मास्टर प्रताप सिंह। तराई के जनसंघर्षों और मजदूर-किसानों के मसीहा व भ्रष्ट राजनेता, अफसर और तिगड़मबाजों की आँखों की किरकरी। मास्साब सिर्फ स्कूल में बच्चों को पढ़ाते नहीं थे, बल्कि आम लोगों के हकहकूक के लिए सड़क पर संघर्ष भी करते थे। वे तराई के जननायक थे।
12 जुलाई, 1958 को शाही, उत्तर प्रदेश में जन्में प्रताप सिंह 1884 में सरस्वती शिशु मन्दिर गदरपुर में प्रधानाचार्य बनकर आये। 1990 में दिनेशपुर में समाजोत्थान संस्थान की स्थापना की और 18 मार्च 2018 को कैंसर से जंग हार गये। वे आर एस एस में विद्या भारती का अवध मण्डल में काम देखते थे। शीर्ष नेता थे। दक्षिणपंथ से मोहभंग होने के बाद मास्साब वामपंथ की ओर बढ़े। जबर्दस्त जन आन्दोलन करने और सरकारी खामियों को उजागर करने की लड़ाई लड़ते हुए प्रशासन द्वारा उन्हें कथित माओवादी ट्रेनर तक करार दिए गया।
मास्साब की दास्तानं बहुत रोचक और लम्बी है। जिसे युवा पत्रकार और मास्साब के पुत्र रूपेश कुमार सिंह ने ‘‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे से लाल सलाम तक मास्साब’’ किताब में बहुत करीने से दर्ज किया है। मास्साब के जन्मदिन के मौके पर उनकी जीवनी के आधार पर उन्हें याद करना बनता है। मास्साब बहुआयामी व्यक्तित्व और विविध कृत्तित्व के धनी थे। दिनेशपुर में उन्होंने जमींदार, सूदखोरों के विरुद्ध, बंगाली समाज के परिवारों की बेदखली के खिलाफ, सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ लम्बा संघर्ष किया। एक संघी से कम्युनिस्ट बनने की उनकी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। इस सफर में मास्साब को कई बार यातनाएं झेलनी पड़ी, जेल जाना पड़ा।