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नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राष्ट्रपति मुर्मू की मौजूदगी में उत्तराखंड की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया

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नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राष्ट्रपति मुर्मू की मौजूदगी में उत्तराखंड की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया

 

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का किया स्वागत, विधान सभा सत्र को भी किया सम्बोधित

 

देहरादून उत्तराखंड के प्रतिपक्ष नेता यशपाल आर्य ने विधान सभा में द्रौपदी मुर्मू का स्वागत किया इस दौरान उन्होंने विधान सभा के विशेष सत्र में उत्तराखंड की कई समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया

 

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने विधान सभा के विशेष सत्र में सम्बोधित करते हुए कहा की उत्तराखंड सभी मानकों में एक विशिष्ठ प्रदेश है। भौगोलिक स्थितियों के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उत्तराखण्ड की सीमाऐं नेपाल और तिब्बत से मिलती हैं। उत्तर में गिरीराज हिमालय उत्तराखण्ड और देश की रक्षा में अडिग खड़े हैं

उन्होंने कहा प्रकृति ने इस राज्य को हिमालय के अलावा हिमालय की गोद से निकलने वाले ‘‘सदा नीरा’’ नदियां दी हैं । ये जीवन दायिनी नदियां सदियों से आधे भारत की धरती की प्यास बुझा रही हैं। परोपकारी हिमालय से निकलने वाली इन नदियों ने अपने साथ लाई हिमालय की मिट्टी में एक सहिष्णु ‘‘गंगा- जमुनी संस्कृति ’’ को भी विकसित किया है।

 

नेता प्रतिपक्ष ने कहा उत्तराखण्ड में स्थित 6 राष्ट्रीय पार्क और 7 वन्य जीव अभ्यारण्य यहां की वन और वन्य जीव सम्पदा की निशानी हैं। इसीलिए उत्तराखण्ड और हिमालय को भारत भूमि ‘‘आक्सीजन टावर’’ भी कहा जाता है।

 

उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू को प्रकृति की बेटी हैं की संज्ञा देते हुए कहा की उनके ग्रह राज्य उड़ीसा के जिले मयूरभंज पर भी प्रकृति ने बड़ी कृपा की है

 

उन्होंने कहा की उन्हें उत्तराखण्ड की विधानसभा में यह कहते हुए अत्यन्त गर्व हो रहा है कि, उत्तराखण्ड की महिलाऐं भी जंगलों को अपना मायका समझती है। जब-जब इस प्रदेश के जल-जंगल और जमीन पर संकट आया यहां की महिलाओं ने घरों से निकल कर सत्ता से संघर्ष कर अपने मायके याने जंगलों को बचाया है।

 

आर्य ने कहा इतिहास गवाह है कि, विश्व विख्यात पर्यावरण आंदोलन ‘‘चिपकों आंदोलन’’ 26 मार्च 1974 को सीमांत चमोली के एक छोटे जनजाति गांव रैणी से एक माता गौरा देवी के नेतृत्व में आरम्भ हुआ था। गौरा देवी भी आपकी ही तरह प्रकृति और जंगलों की बेटी थी जो जंगलों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गई थी।

 

उन्होंने कहा उत्तराखण्ड सांस्कृतिक और धार्मिक गुलदस्ता है यहाँ चार धामों में एक श्री बदरीनाथ धाम , 12 ज्योर्तिलिगों में एक श्री केदारनाथ जी , मां गंगा का उद्ग्म स्थल श्री गंगोत्री जी और मां यमनोत्री की पुण्य भूमि श्री यमनोत्री के अलावा यहां सनातन के वैष्णव, शैव व शाक्त मतों के सैकड़ों पवित्र तीर्थ हैं।

 

उत्तराखण्ड में ही 15200 फीट की ऊंचाई में सिक्ख धर्म का पवित्र स्थान हेमकुंड साहिब है ,इसी राज्य के तराई में नानक मत्ता साहिब हैं। उत्तराखण्ड के रुड़की शहर के पास 13 वीं शताब्दी से चिश्ती सिलसिले की पीरान कलियर दारगाह शरीफ सूफी संत मत की सुगंध बिखेर रही है।

 

उन्होंने कहा उत्तराखण्ड का समाज सदियों से समावेशी समाज रहा है। इस धरती पर जो भी जिस रुप में आया उसे देवभूमि ने सहर्ष स्वीकार किया और सम्मान दिया।

 

विशिष्ठताओं के साथ उत्तराखण्ड राज्य विडम्बनाओं का प्रदेश भी है उन्होंने कहा राज्य को प्रकृति की मार भी झेलनी पड़ती है। इस साल की बरसात में गंगोत्री क्षेत्र के धराली, चमोली के थराली , रुद्रप्रयाग की बसुकेदार तहसील के विभिन्न गांवों के साथ-साथ राजधानी देहरादून जैसे सुरक्षित शहर में भी दर्जनों लोगों ने आपदाओं में जान गंवाई है।

 

उन्होंने कहा जंगल देश- दुनिया के पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं लेकिन जंगली जानवरों के कारण उत्तराखण्ड के अधिकांश भू-भाग में खेती बरबाद हो रही है 25 सालों में उत्तराखण्ड की विधानसभा में दर्जनों बार यह प्रश्न उठा है लेकिन प्रकृति की मार से हम अपने खेत-खलिहानों को नहीं बचा पा रहे हैं।

 

नेता प्रतिक्ष आर्य ने कहा राज्य में वन्य जीव और मानव संघर्ष ही नहीं वन कानून भी आम जन के लिए परेशानी का कारण बन रहे हैं। देश की संसद में 2006 से वन अधिकार कानून पास हो गया है

अन्य राज्यों में वनाधिकार कानून के तहत लाखों वन वासियों और वन आश्रितों को भूमिधरी और सामुदायिक अधिकार मिले हैं।

 

लेकिन उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि, आज की तिथि तक 65 प्रतिशत वन भूमि वाले इस राज्य में वनाधिकार कानून के तहत दर्जन भर मामलों में भी अधिकार नहीं मिल पाए हैं।

 

उन्होंने कह उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या पहाड़ी जनमानस का तीव्रगति से शहरों की ओर पलायन है। कृषि योग्य भूमि की अपर्याप्तता, कष्टप्रद जीवन, रोजगार की तलाश, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं के अभाव के कारण पर्वतीय क्षेत्र से पुरुष कार्यकारी शक्ति का पलायन होता जा रहा है।

 

पलायन के कारण गृहस्थी तथा कृषि अर्थव्यवस्था का सम्पूर्ण बोझ महिलाएँ सम्भाले हुए हैं। पर्वतीय भू-भाग में कृषि का मूल आधार महिला है। खेत में बीज खाद निराई, गुड़ाई, फसल, कटाई, मण्डाई, सफाई एवं घर का रख-रखाव सभी कार्य महिलाओं द्वारा किए जाते हैं। खेती, पशुपालन, ईंधन, चारे व पानी आदि की दैनिक व्यवस्था में सुबह से शाम तक जुटे रहना नारी की स्थिति बन गई है।

साथ ही जनसंख्या की वृद्धि, बेरोजगारी की समस्या, कच्चे माल के बहिर्गमन की समस्या, तकनीकी कौशल की कमी, औद्योगीकरण का अभाव, वैज्ञानिक कृषि पद्धति का अभाव, बागवानी एवं उद्यानिकी को समुचित प्रश्रय न मिलने तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों की उपेक्षा के परिणामस्वरूप पर्वतीय अर्थव्यवस्था में वांछित सुधार और पर्वतीय जनमानस को आत्मनिर्भरता प्राप्त नहीं हो पाई है जिसके चलते पलायन की समस्या बढ़ी है वरन सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये भी गम्भीर चुनौती पैदा हुई है।

 

 

उन्होंने कहा क्षेत्रीय विकास के लिये शिक्षा का विशेष महत्त्व होता है।अभी भी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के बावजूद पर्वतीय इलाकों में तकनीकी शिक्षा का पूर्णतः अभाव बना हुआ है। स्थानीय, भौगोलिक एवं भौतिक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है ताकि युवा वर्ग आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सके।

 

उन्होंने कहा विगत पंचवर्षीय योजनाओं में राज्य के विकास के लिये अरबों रुपयों का प्रावधान किया गया, लेकिन अभी भी प्रदेश की मूल भूत समस्याओं का निराकरण और न ही आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त हो पाया है ।

 

जिसके परिणामस्वरूप आज तक स्थानीय जनजीवन के वास्तविक कष्टों का अन्त नहीं हो पाया है।

 

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में **स्वास्थ्य और शिक्षा** की समस्याएँ आज भी चिंतनीय हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, हमें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार शिक्षा, ,रोजगार , सड़क, कृषि, उद्यमिता , पर्यटन ,पेयजल आपूर्ति,, सड़क एवं परिवहन व्यवस्था, ऊर्जा विकास के क्षेत्र में निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है ।

 

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा की राष्ट्रपति मुर्मू के संबोधन से उत्तराखंड विधान सभा गौरवान्वित हुई है उन्होंने कहा राष्ट्रपति के संबोधन से उत्तराखंड के विकास में जहां गति मिलेगी वहीं वही उत्तराखंड को पहचान भी मिलेगी


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