लेखक रजनीश जस किताबों से सुधारेंगे जेल में बंद कैदियों को 

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लेखक रजनीश जस किताबों से सुधारेंगे जेल में बंद कैदियों को

 

लेखक रजनीश ने जेल में बांटी कैदियों को प्रेरणादायीं पुस्तकें

 

 

रुद्रपुर दिवाली की छुट्टियों को सार्थक बनाने के लिए रजनीश जस अपने कुछ दोस्त हल्द्वानी जेल में किताबें देने गए।

रजनीश जस , एक लेखक, कवि हैं जो रूद्रपुर, उत्तराखंड में एक प्राईवेट कंपनी में कार्यरत हैं।

इन्होनें गदरपुर, उत्तराखंड और पंजाब में अपने पैतृक गाँव पुरहीरां के पास बस्सी दौलत खां के स्कूल में लाईब्रेरी दी हैं।

इनके पिता गुरबख्श जस भी एक पंजाबी लेखक थे जिन्होनें ओशो , राहुल सांकृत्यान और कृष्ण चंद्र के साहित्य को पंजाबी में अनुवाद किया है।

 

रजनीश जस ने जेल में कैदियों के साथ किताबों की सार्थकता के बारे में बात की उन्होंने कहा किताबों की रोशनी से जीवन के अंधेरा, निराशा, दुख और संताप से मुक्त हुआ जा सकता है।

 

रजनीश ने कहा जेल के कैदियों के पास समय होता है कि वह अपने जीवन के बारे में सोच सके और इस कार्य को सार्थक बनाने में किताबों से और ज्यादा सहायक कुछ नहीं हो सकता क्योंकि किसी किताब पर लिखा हुआ एक शब्द, एक लाईन…. किसी आदमी के जीवन में क्रांति ला सकता हैं।

रजनीश जस ने बताया कि वो जब-जब भी डिप्रेशन का शिकार हुए तो उन्हें निराशा की दलदल से निकलने के लिए किताबें ने हमेशा मदद की है अब उन्होनें अपने जीवन का यही मंतव बनाया है कि निराशा में फंसे हुए और लोगों को निकालने के लिए किताबों का प्रसार करेंगे।

कैदियों से बात करते वक्त “जंग बहादुर गोयल” जी की किताब,” साहित्य संजीवनी” में से मिंटू गुरसरिया का किस्सा सुनाया जो कि पंजाब में कबड्डी का खिलाड़ी था फिर अंडरवर्ल्ड का डॉन बना, फिर जब उसकी टांग टूट गई तो वह बिस्तर पर पड़े पड़े उसने इतनी किताबें पढ़ीं कि उसका जीवन पूरी तरह से बदल गया, उसने सारे बुरे काम छोड़ दिए और वह अब बहुत ही बड़ा मोटिवेशनल गुरु हैं।

आर.के लक्ष्मण की किताब,” स्वामी और उसके दोस्त” और मुंशी प्रेमचंद की किताबें जिस्म की कहानी थी शतरंज के खिलाड़ी, दो दोस्त, रामलीला, दो बैलों की जोड़ी इत्यादि।

इस काम में रजनीश जस के साथ उनके दोस्त परविंदर सिंह, अंग्रेज सिंह, विपिन हुरीया और हरिनंदन भी थे

इस कार्य के लिए हम सब ने मिलकर, अमेरिका में रहते हुए दोस्त सतविंदर सिंह और वीवा मार्ट , रूद्रपुर वाले मनोज ने आर्थिक मदद की।

जेल में यह किताबें देने का आईडिया रजनीश ने बचपन में देखी हुई फिल्म,” दो आंखें बारह हाथ” से आया जो वी शांताराम की एक क्लासिक मूवी है। इसमें एक जेलर 6 कैदियों को सुधारने का काम करता है।

रजनीश ने जेल के जेलर पी के पांडे का आभार भी जताया


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