काशीपुर में लगने वाले ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व खतरे में
काशीपुर। उत्तर भारत के ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए कि लगातार बढ़ती महंगाई मेले को खत्म करने में लगी हुई है। खास बात ये है कि इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। ऐतिहासिक कहे जाने वाले चैती मेले में कभी भारी मात्रा में लगने वाली दुकानों की गिनती में अब लगातार कमी आती जा रही है। हजारों की दुकान के दाम अब लाखों में कर दिए गए हैं। लोगों को उम्मीद थी कि सरकारीकरण के बाद इस मेले की दशा में सुधार आएगा, लेकिन इस उम्मीद पर लगातार पानी फिर रहा है। ज्ञात हो कि इस बार चैती मेले का शुभारंभ 9 अप्रैल को हुआ। सप्ताह भर मां बाल सुंदरी देवी की प्रतिमा चैती भवन में रही लेकिन ऐतिहासिक चैती मेला रंग नहीं जमा सका। मेले में झूले के अलावा मनोरंजन का शायद ही दूसरा कोई साधन हो। झूलों के दाम भी मनमाने और आम आदमी की हैसियत से बाहर हैं। तमाम दुकानदारों ने मेले में दुकानें लगाना बंद कर दिया है, इसलिए मेले में अधिकांश जगह ख़ाली और उजाड़ नजर आती है। हालत यह है कि दुकानों के लिए डाले गये टिनशेड भी सूने पड़े हैं। महंगे टेंडर के चलते उन्हें भी दुकानदार नहीं मिल सके। टेंडर पाने की होड़ के चलते टेंडर लगातार महंगा होता जा रहा है और इसका खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ रहा है। दुकानदार को जो दुकान कभी बेहद मुफीद दामों में मिल जाती थीं, उसे लेना टेढ़ी खीर साबित हो गया है। क्षेत्र में खुली चर्चा है कि मेले के ठेकेदारों और उनके सहयोगियों की मनमानी मेले का अस्तित्व खतरे में डाल रही है। मनमाने दामों ने मेले की रौनक लगभग खत्म ही कर दी है। हर साल दुकानों की संख्या कम होती जा रही है। बड़े पैमाने पर व्याप्त गंदगी मेले में चार चांद लगाती है। खुले में लघुशंका व शौच भी मेला प्रशासन को आईना दिखाता है। कुल मिलाकर सरकारीकरण के बाद ऐतिहासिक चैती मेला दुर्दशा का शिकार बताया जा रहा है। बुद्धिजीवियों का कथन है कि अगर समय रहते सरकार ने इस ओर ध्यान न दिया तो इस ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व सिर्फ इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगा।
” जनता का कहना है की इससे तो पंडा परिवार के समय में जमीनों के रेट कम हुआ करते थे। सरकारीकरण के बाद जमीनों के रेट आसमान छू गए हैं। मेले की सफाई व्यवस्था बिल्कुल चौपट है। दुकानदारों और श्रृद्धालुओं को सुविधा के नाम पर मेले में कुछ भी नहीं है”