जब कोई अच्छा काम कर रहा हो तो उसे रोके नहीं, बल्कि उसे अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करें, अच्छे काम भी पूजा-पाठ की तरह ही होते हैं….. कथावाचक नीरजा शरणार्थी
रुद्रपुर…श्री अनंत प्रेम आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इसमें श्रद्धालु जमकर थिरके। इस मौके पर पूरा कथा परिसर भगवान श्री कृष्ण के जयकारों तथा नंद के आनन्द भयो, जय कन्हैयालाल की जय से गूंजायमान हो उठा। कथा के दौरान कथा वाचक नीरजा शरणार्थी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा जब-जब अत्याचार और अन्याय बढ़ता है, तब-तब प्रभु का अवतार होता है। प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। जब कंस ने सभी मर्यादाएं तोड़ दी तो प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। यहां पर जैसे ही श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग कथा में आया तो श्रद्धालु हरे राधा-कृष्ण के उदघोष के साथ नृत्य करने लगे। श्री अनंत प्रेम आश्रम में भागवत कथा में भक्तों का जन सैलाब उमड़ा,कथा वाचक नीरज शरणार्थी ने राजा बलि और वामन अवतार से जुड़ी कथा का भक्तों के बीच में उच्चारण किया। जिसमें वामन देव भगवान विष्णु के अवतार हैं ऐसा बताया गया। असुरों के राजा बलि ने देवताओं को युद्ध में पराजित कर दिया था और स्वर्ग अपने कब्जे में ले लिया था। बलि की वजह से सभी देवता बहुत दुखी थे। दुखी देवता अपनी माता अदिति के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। इसके बाद अदिति ने पति कश्यप ऋषि के कहने पर एक व्रत किया, जिसके शुभ फल से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया। वामन देव ने छोटी उम्र में ही दैत्यराज बलि को पराजित कर दिया था। बलि अहंकारी था, उसे लगता था कि वह सबसे बड़ा दानी है। विष्णु जी वामन देव के रूप में उसके पास पहुंचे और दान में तीन पग धरती मांगी। अहंकार बलि ने सोचा कि ये तो छोटा सा काम है। मेरा तो पूरी धरती पर अधिकार है, मैं इसे तीन पग भूमि दान कर देता हूं।
बलि वामन देव को तीन पग भूमि दान देने के लिए संकल्प कर रहे थे, उस समय शुक्राचार्य ने उसे रोकने की कोशिश की। दरअसल, शुक्राचार्य जान गए थे कि वामन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। शुक्राचार्य ने बलि को समझाया कि ये छोटा बच्चा नहीं है, ये स्वयं विष्णु हैं, ये तुम्हें ठगने आए हैं। तुम इन्हें दान मत दो। ये बात सुनकर बलि बोला कि अगर ये भगवान हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी मैं इन्हें मना नहीं कर सकता हूं। ऐसा कहकर बलि ने हाथ में जल का कमंडल लिया तो शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल की दंडी में जाकर बैठ गए, ताकि कमंडल से पानी ही बाहर न निकले और राजा बलि संकल्प न ले सके।
वामन देव शुक्राचार्य की योजना समझ गए। उन्होंने तुरंत ही एक पतली लकड़ी ली और कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे अंदर बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे तुरंत ही कमंडल से बाहर आ गए। इसके बाद राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया।
राजा के संकल्प लेने के बाद वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। इसके बाद उन्होंने राजा से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं? ये सुनकर राजा बलि का अहंकार टूट गया। तब बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं।
बलि की दान वीरता देखकर वामन देव प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।
कथावाचक नीरजा शरणार्थी ने कहा कि इस कहानी की सीख यह है कि जब भी कोई व्यक्ति अच्छा काम कर रहा हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए। इस कहानी में शुक्राचार्य राजा बलि को दान करने से रोक रहे थे, इस काम की वजह से उन्हें अपनी एक आंख खोनी पड़ी। जब हम किसी को अच्छे काम करने से रोकते हैं तो हमारी परेशानियां बढ़ती हैं। अच्छे काम करना भी पूजा-पाठ करने की तरह ही है। हमें भी नेक काम करते रहना चाहिए।
इस दौरान कथा व्यास आचार्य नीरजा शरणार्थी, संत प्रेम निष्ठानंद बाई जी, पंडित लव कुश शास्त्री श्री धाम वृंदावन, जैन प्रॉपर्टीज, कमल जैन, कमल बंसल, श्रीमति अंजू बंसल, अरिहंत बंसल,चारुल बंसल,अंशिका, उजाला, आदीश,महक, सालिकराम बंसल, राधेश्याम बंसल, विष्णु बंसल, महेश बंसल, गोपेश बंसल, जसपाल अरोरा, खैराती लाल गगनेजा, सुभाष गगनेजा, चेतन, राजू हुडिया, शिवम,राजपाल पुष्पा रानी, कीर्ति, प्रिया ,मानसी, कुंदन लाल अग्रवाल, बजरंग लाल अग्रवाल, अखिलेश अग्रवाल, मनोज गोस्वामी, राधा रानी अग्रवाल, सुभाष गगनेजा, खैराती लाल गगनेजा, आदि भक्त उपस्थित थे।