





दिनेशपुर। श्री श्री दुर्गा पूजा महोत्सव का शुभारंभ महाषष्ठी पूजा के पावन अवसर पर शंखनाद उलू उलू के ध्यानी के साथ शुरू हो गया हैं। दुर्गा पूजा पंडाल में आयोजित इस अनुष्ठान ने पूरे क्षेत्र में त्योहारों की आधिकारिक शुरुआत का संदेश दिया हैं। इस दौरान महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर शंखध्वनि और उलू उलू के ध्यानी से गूंजे वातावरण में श्रद्धालु मां दुर्गा की भक्ति और आस्था में डूब गए।
नगर स्थित सब्जी मार्केट के सामने मां दुर्गा मंदिर प्रांगण में भव्य आयोजन वर्षों से होता आ रहा है। हर साल यहां दुर्गा पूजा महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकजुटता का भी प्रतीक भी बन जाता है। इस बार भी परंपरा को निभाते हुए महाषष्ठी पूजा पर कलश स्थापना और आदिशक्ति की पूजा-अर्चना के साथ महोत्सव की शुरुआत हुई। वही दुर्गा पूजा महोत्सव की सबसे बड़ी खासियत यहां आयोजित होने वाले विविध कार्यक्रम हैं, जो पूरे उत्सव को भक्ति और उत्साह से भर देते हैं। आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि बंगाली समाज में दुर्गा पूजा का महत्व बहुत गहरा है। मान्यता है कि महाषष्ठी के दिन मां दुर्गा अपने मायके आती हैं और दशमी के दिन अपने ससुराल लौट जाती हैं। इसी कारण इस पर्व को बेटी के घर आने की खुशी की तरह मनाया जाता है। दशमी की विदाई के बाद भक्त पूरे वर्ष मां के अगले आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति, संस्कृति और उत्सव का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। बंगाली समाज के लोग अपने दैनिक कार्यों से विराम लेकर इस महोत्सव में पूरी श्रद्धा और आनंद के साथ सम्मिलित होते हैं। दुर्गा पूजा हर वर्ष अपनी भव्यता और विशेष प्रस्तुतियों के कारण अलग पहचान रखती है। मां की पूजा-अर्चना के बाद रात्रिकालीन कार्यक्रमों से पूरा माहौल जीवंत हो उठता है। धार्मिक झांकियां, बांग्ला जात्रा गान और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां समाज को एक सूत्र में बांधती हैं। आयोजन समिति के अध्यक्ष रोहित मंडल का कहना है कि दुर्गा पूजा महोत्सव केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एकता, प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाला पर्व है। यही कारण है कि हर वर्ष यहां का आयोजन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं और दर्शकों को आकर्षित करता है। नगर में दुर्गा पूजा महोत्सव न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि समाजिक एकजुटता और भारतीय परंपरा की जीवंत मिसाल भी है।