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मुक्ति पर्व-आध्यात्मिक स्वतंत्रता का पर्व

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*मुक्ति पर्व-आध्यात्मिक स्वतंत्रता का पर्व*

*ब्रह्म ज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं से उसे प्रतिपल जीना वास्तविक मुक्ति है*

—– *सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज*

 

 

 

 

*काशीपुर 15 अगस्त 2022* “ब्रह्म ज्ञान को जीवन का आधार बनाकर निरंकार से जुड़े रहना और मन में उसका प्रतिपल स्मरण करते हुए सेवा भाव को अपनाकर जीवन जीना ही वास्तविक भक्ति है। पुरातन संतो एवं भक्तों का जीवन भी ब्रह्म ज्ञान से जुड़कर ही सार्थक हो पाया है”। यह उक्त उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने मुक्ति पर्व समागम के अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। सतगुरु माता जी ने आशीर्वाद देते हुए फरमाया की ब्रह्म ज्ञान को जानना ही मुक्ति नहीं अपितु उसे प्रतिपल जीना ही वास्तविक मुक्ति है। यह अवस्था निरंकार को मन में बसाकर उसके रंग में रंग कर ही संभव है। क्योंकि ब्रह्म ज्ञान की दृष्टि से जीवन की दशा एवं दिशा एक समान हो जाती है।

जीवन में आत्मिक स्वतंत्रता के महत्व को सतगुरु माता जी ने उदाहरण सहित बताया कि जिस प्रकार शरीर में जकड़न होने पर उस से मुक्त होने की इच्छा होती है ।उसी प्रकार हमारी आत्मा तो जन्म जन्म से शरीर में बंधन रूप में है, और इस आत्मा की मुक्ति केवल निरंकार की जानकारी से ही संभव है। जब हमें अपने निज घर की जानकारी हो जाती है, तभी हमारे आत्मा मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेती है। उसके उपरांत ब्रह्म ज्ञान की दिव्य रोशनी मन में व्याप्त समस्त नकारात्मक भावों को मिटाकर भय मुक्त जीवन जीना सिखाती है और तभी हमारा लोक सुखी एवं परलोक सुहेला होता है। ब्रह्म ज्ञान द्वारा कर्मों के बंधनों से मुक्ति संभव है । क्योंकि इससे हमें दातार की रजा में रहना आ जाता है। जीवन का हर पहलू हमारी सोच पर ही आधारित होता है। जिससे उस कार्य का होना ना होना हमें उदास या चिंतित करता है। अतः इसकी मुक्ति भी निरंकार का आश्रय लेकर ही संभव है ।

संत निरंकारी मिशन द्वारा प्रतिवर्ष 15 अगस्त अर्थात स्वतंत्रता दिवस को मुक्ति पर्व के रूप में भी मनाया जाता है इस दिन जहां पर इधनता से मुक्त कराने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को नमन किया जाता है वहीं दूसरी और आध्यात्मिक जाग आध्या जागरूकता के माध्यम से प्रत्येक जीव आत्मा को सत्य ज्ञान की दिव्य ज्योति से अवगत करवाने वाली दिव्य विभूतियों शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुधवंती जी, निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी, सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी एवं अन्य भक्तों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके जीवन से सभी भक्तों द्वारा प्रेरणा प्राप्त की जाती है।

15 अगस्त 1964 से ही यह दिन जगत माता बुधवंती जी और तत्पश्चात 1970 से शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी के जीवन के प्रति समर्पित रहा। शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी द्वारा संत निरंकारी मिशन की रूपरेखा एवं मिशन को प्रदान की गई उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए निरंकारी जगत सदैव ऋणी रहेगा। सन 1979 में संत निरंकारी मंडल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह जी ने जब अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया, तभी से बाबा गुरबचन सिंह जी ने इस दिन को मुक्ति पर्व का नाम दिया। ममता की दिव्य छवि निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी ने अपने कर्म एवं विश्वास से मिशन के दिव्य संदेश को जन-जन तक पहुंचाया और अगस्त माह में ही उन्होंने भी अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया। माता सविंदर हरदेव जी ने सतगुरु रूप में मिशन की बागडोर सन 2016 में संभाली। उसके पूर्व 36 वर्षों तक उन्होंने निरंतर बाबा हरदेव सिंह जी के साथ हर क्षेत्र में अपना पूर्ण सहयोग दिया और निरंकारी जगत के प्रत्येक श्रद्धालु को अपने वात्सल्य से सराबोर किया। यह प्रेम करुणा और देवी शक्ति की एक जीवंत मिसाल थी।

अंत में सतगुरु माता जी ने सभी के लिए मंगल कामना करते हुए कहा कि जब हम निरंकार को जीवन का आधार बना लेते हैं, तब सेवा, सिमरन, सत्संग को हम प्राथमिकता देते हुए इस निरंकार के रंग में स्वयं को रंग लेते हैं। जिससे हम अहम भावना से मुक्त हो जाते हैं।

इस संत समागम में सतगुरु माता सविंदर हरदेव जी के विचारों का संग्रह युग निर्माता पुस्तक का विमोचन निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी के कर कमलों द्वारा हुआ।

स्थानीय काशीपुर ब्रांच में भी निरंकारी सत्संग भवन पर आज 75 में स्वतंत्रता दिवस के साथ-साथ मुक्ति पर्व संत समागम भी मनाया गया। इस अवसर पर स्थानीय स्तर पर सैकड़ों की संख्या में निरंकारी श्रद्धालुओं ने पहुंच कर सेवा दल की रैली के पश्चात सत्संग का लाभ उठाया। सत्संग में स्थानीय महात्मा राजेंद्र अरोड़ा जी द्वारा 75वें स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं के साथ-साथ पुरातन महापुरुषों का तथा स्थानीय ब्रह्मलीन हो गए संतों के कर्मशील जीवन का जिक्र किया गया


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