




अगाध आस्था का प्रतीक रामबाग शिव मंदिर
दिनेशपुर। पुरातात्विक व धार्मिकता से सराबोर देवभूमि के तराई क्षेत्र में एक ऐसा ग्राम है रामबाग। यह क्षेत्र चंद्रवंशियों की देश भक्ति ब्रितानी एस्टेट गवाह रहा है। किवदंती है कि लगभग 328 वर्ष पहले एक शिवलिंग मिला था, जिसमें आस्थावानों की श्रद्धा बढ़ती गई। पुरातत्व विकास की टीम ने रामबाग मंदिर के निकट 1988 में खुदा की। उनको तमाम छोटी-बड़ी मूर्तियां मिली। पुरातत्वविदों के अनुसार पत्थरों को तराश कर तैयार की गई। यह कलाकृतियां 13वीं सदी से पूर्व की उदाहरण है। तब कुमाऊ और गढ़वाल में मूर्ति स्थापत्य कला उत्कर्ष पर थी । देवी देवताओं व देवगणों की ये मूर्तियां स्पष्ट करती हैं कि यहां क्षेत्र धार्मिक लिहाज से महत्वपूर्ण रहा होगा। बुक्सओं ने 1953 में इस पवित्र स्थल पर मंदिर स्थापित किया। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के पुजारी चंद्र सिंह के दादा कल्याण सिंह की कोई संतान नहीं थी। यह उस समय की बात है जब तराई क्षेत्र में घनघोर जंगल हुआ करते थे। बुक्सा कल्याण सिंह शिव के पराम् भक्त थे। कहा जाता है कि उन्हें स्वपन में बाबा भोले नाथ ने दर्शन दिए। और स्वपने में बाबा भोले नाथ ने कहा कि गांव में ही टीलो पर शिवलिंग निकलेगा।और यदि यहां शिवलिंग के दर्शन करें तो मनोकामना पूरी होगी। दंत कथा के अनुसार कल्याण सिंह को शिव के आशीर्वाद से 2 पुत्र भागमल और केदार सिंह प्राप्त हुए। भागमल ने मंदिर की स्थापना कर 20 वर्षों तक उपासना की।1993 इस परंपरा को उनके पुत्र चंद्र सिंह लखचौरसिया व उनकी पत्नी मनतो देवी निभा रही है। उन्होंने शिव मंदिर सुधार समिति और 2005 में आदिवासी शिव समिति गठित की। प्राचीन शिव मंदिर का शिवलिंग में एक चमत्कारिक माना जाता है। सुबह दोपहर शाम लोग इसका रंग बदलना लोगों को अचंभित करता है। शिवलिंग के आकार में वृद्धि होना भी लोगों में चर्चा का विषय है। शिवरात्रि के दिन से पूर्व रात्रि तक कांवरिया हरिद्वार से गंगाजल लेकर यहां पहुंचते और शिवरात्रि के दिन प्रातकाल से लाखों की भीड़ से जलाभिषेक के लिए कतार लग जाती है। विश्वास व उम्मीद और आस्था के साथ प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन से सभी का मनोकामना पूरी होती है। जिसका जीता जागता उदहारण हैं रामबाग मंदिर।
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दिनेशपुर। रामबाग के प्रचीन मन्दिर के तत्वधान में आयोजित जल अभिषेक व मेले का तैयारी आदिवासी शिव समिति ने पूरी कर ली। जिसकी शुरुबात हरिद्वार से लेकर आये गंगा जल से कावरियों के द्वारा से जलाभिषेक से शिव महारात्रि का आगाज हो गई है। इस दौरान बिशाल मेले का भी आयोजन किया गया। जिसमें दूर दराज से आये झूला, सर्कस, नाटक, डांस, मोत का कुआँ आदि का आयोजन किया गया। मेले में मिठाईया के दुकान, पकोड़ी, चूड़िया, खिलोने अनेक स्टोल भी लगाए हैं। जो एक अकर्षक का केंद बनेगा। मेले में लगभग 3 लाख से भी अधिक भीड़ का अनुमान लगाया जा रहा हैं। जिसमे कावरियों का भीड़ पहले दिन लगभग 10 से 20 हजार का भीड़ का अनुमान हैं। जिसके शांति व्यबस्था के लिए थाना प्रभारी नंदन सिंह रावत ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी अफ़वाह पर ध्यान ना दे। किसी भी संदिग्ध व्यक्ति या कोई भी हलचल का पता चले तो तुरंत पुलिस को खबर दे।

