सरकार को लगाया जा रहा राजस्व का भारी चूना, अलग कमेटी गठित करने की उठ रही मांग
काशीपुर। निजी अस्पतालों के संचालक इलाज के नाम पर मानवता की सभी हदें पार करते हुये रोगियों तथा उनके तीमारदारों से अभद्रता कर रहे हैं। इससे मानवता शर्मसार हो रही है। डॉक्टर्स की इस कार्यशैली से लोगों में रोष है। बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि गैरकानूनी ढंग से संचालित हो रहे निजी अस्पतालों पर नजर रखने को अलग से कमेटी गठित की जाए। ज्ञातव्य है कि मुरादाबाद रोड पर ढेला पुल के आसपास से लेकर मंडी चौकी तक नियम कायदों को दरकिनार कर संचालित किए जा रहे प्राइवेट अस्पतालों में चल रही धांधलेगर्दी का कोई सानी नहीं है। जानकार बताते हैं कि स्वास्थ्य महकमे के कुछ भ्रष्ट उच्चाधिकारियों से सांठगांठ कर अस्पताल संचालक लगातार मनमानी करते हुए धन बटोर अभियान चलाए हुए हैं। हर दिन कोई न कोई शख्स इनका शिकार हो रहा है। दिलचस्प ये है कि विवादों को लेकर सुर्खिर्यों में आए अस्पतालों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती। इससे स्वास्थ्य विभाग की मंशा का भी अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि काशीपुर में पिछले पांच-छह वर्षों में दर्जनों निजी अस्पताल खुल गए। सही मायनों में निजी अस्पताल कमीशन खोरी व दलाली के बल पर संचालित है। नियम कायदों से इनका कोई सरोकार नहीं है। इंसानियत और मानवता के नाम पर निजी अस्पतालों में कथित तौर पर सेवा दे रहे धरती के भगवान ने शैतान का चोला ओढ़ लिया है। इलाज के नाम पर भारी भरकम बिल बनाने को लेकर अक्सर अस्पतालों में उपजे विवाद प्रकाश में आते हैं। निजी अस्पताल खोलकर बैठे डॉक्टरों ने मौत के बाद भी उगाही की तरकीब निकाली है। मृत व्यक्ति को वेंटिलेटर पर रखकर आर्थिक दोहन के अब तक कई मामले प्रकाश में आए लेकिन जिम्मेदार अधिकारी कान में तेल डाले बैठे हैं। आपदा में अवसर तलाशना चिकित्सकों की फितरत बन चुकी है। बारीकी से जांच की जाए तो ऐसे अनगिनत लोग मिलेंगे जिनका बीमारी से निजात पाने के नाम पर घर बार सब कुछ बिक गया।
झोलाछाप के भरोसे चल रहे प्राईवेट अस्पताल
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रें में बैठे झोलाछाप डॉक्टर निजी अस्पतालों की कमाई के मजबूत आधार हैं। वह कमीशन के लालच में रोगियों को सेटिंग वाले अस्पताल में भेजते हैं। ऐसे ही निजी अस्पतालों के तार सीधे तौर पर सरकारी अस्पताल से जुड़े हैं। यानी सरकार के राजस्व में चूना लगाते हुए सरकारी अस्पताल से मरीजों को गुमराह कर उन्हें कमीशन के लालच में निजी अस्पतालों में भेजने का काम किया जा रहा है। इस काम के लिए सरकारी अस्पताल में दलाल भी सक्रिय देखे जा सकते हैं।