शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से खुलेआम हो रही लूटखसोट का जिम्मेदार कौन ? : शफीक अंसारी

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शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से खुलेआम हो रही लूटखसोट का जिम्मेदार कौन ? : शफीक अंसारी

 

काशीपुर। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता

शफीक अहमद अंसारी ने कहा है कि भाजपा राज में विकास और नैतिकता के झूठे नारे लगाकर जनता को बुरी तरह लूटा जा रहा है।भला जिन बच्चों को देश का भावी भविष्य माना जाता है उन बच्चों और उनके अभिभावकों को जिस तरह से प्राइवेट स्कूलों और बुकसेलरों द्वारा खुलेआम लूटा जा रहा है, वह बेहद शर्मनाक है और इस लूटखसोट से पूरे प्रदेश के अभिभावकों में त्राहि-त्राहि मची हुई है मगर कोई कुछ देखने वाला नहीं। प्रेस को जारी बयान में शफीक अहमद अंसारी ने कहा कि एक तरफ सरकार कहती है कि स्कूलों में एनसीईआरटी की सस्ती किताबें पाठ्यक्रम में शामिल की गई हैं ताकि अभिभावकों पर महंगाई की मार और बच्चों के कंधों पर किताबों का बोझ न पड़े, मगर हो रहा है इसका उल्टा।निजी विद्यालय एनसीईआरटी की किताबों के बजाय प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों को तबज्जो दे रहे हैं जिनके रेट एनसीईआरटी की किताबों से कई गुना ज्यादा हैं। प्राइवेट स्कूलों का आलम यह है कि उनमें एनसीईआरटी की किताबें नाम मात्र के लिए लगाई गई हैं और बकाया पूरा कोर्स प्राइवेट प्रकाशकोऔ की महंगी किताबों का लगा हुआ है। कहने को तो शिक्षा विभाग इस संबंध में स्कूलों में चेकिंग अभियान भी चला रहा है, मगर गंभीर स्थिति यह है कि जिस दिन शिक्षा विभाग के अधिकारी या कर्मचारी जिस स्कूल में निरीक्षण करने जाते हैं वहां पहले ही पता चल चुका होता है और उस दिन बच्चों से साफ कह दिया जाता है कि प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें लाने के बजाए केवल एनसीईआरटी की किताबें ही लेकर आएं ।इसका मतलब इस पूरे गोरखधंधे में कहीं न कहीं शिक्षा विभाग भी शामिल है वरना कौन सी टीम किस दिन और किस स्कूल में किस समय निरीक्षण करने जा रही है, इस बात का पहले से ही संबंधित स्कूलों को कैसे पता चल जाता है? बुक सेलर कितनी किताबें बेच रहे हैं और सरकार को कितनी जीएसटी दे रहे हैं, इस बारे में बिक्री कर विभाग घूम तो रहा है मगर उन्हें पता होना चाहिए कि जब बुकसेलर पक्का बिल दे ही नहीं रहे तो फिर कितना माल बिका और कितनी जीएसटी गई इसका पता कैसे लगेगा? ऐसा करके अभिभावकों के साथ-साथ सरकारी खजाने पर भी डाका डाला जा रहा है। एक नहीं अनगिनत अभिभावक अपनी जेब में वह बिल लिए घूम रहे हैं जो छोटी सी पर्ची पर बना कर दिया गया है न कि दुकानदार की बिल बुक से। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अभिभावक जब कोर्स खरीदने जाता है तो कोर्स के साथ-साथ बुकसेलर द्वारा महंगी महंगी कापियां भी जोड़ दी जा रही हैं, जिनकी कीमत दूसरी दुकानों पर बहुत कम होती है। अभिभावक कापियां लेने से इनकार करता है तो बुकसेलर कोर्स देने से ही इन्कार कर देता है और कहता है कि यह तो लेनी ही पड़ेगी। यह बुकसेलरों की मनमानी और हठधर्मिता नहीं तो क्या है? संबंधित स्कूलों ने सांठगांठ कर चंद बुकसेलरों से संपर्क कर रखा है और शिक्षा विभाग के अधिकारियों और विद्यालय प्रबंधकों को खुश रखने के नाम पर अभिभावकों को दोनों हाथों से लूटा जा रहा है। अगर यह बात सही नहीं तो फिर सरकार बताए कि उसके द्वारा एनसीईआरटी की किताबें लगाए जाने के बावजूद प्राइवेट बुकसेलरों की दुकानें प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों से क्यों भरी पडी हैं? अगर शासन और प्रशासन की नियत साफ है तो क्यों न इन किताबों को जब्त कर लिया जाए। पूरा प्रशासनिक अमला भी चुप बैठा है और जनता के चुने हुए सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि भी। उन्हें जनता की कोई चिंता नहीं। एक तरफ आम आदमी दो वक्त की रोटी खाने के लिए परेशान है फिर भी वह जैसेतैसे कर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है तो खुलेआम हो रही लूट का शिकार होता है। आखिर वह कहां जाए? शिक्षा विभाग यदि वास्तव में ईमानदार है तो उसे मीडिया के माध्यम से जन जागरुकता अभियान चलाना चाहिए कि अभिभावक एनसीईआरटी के अलावा कोई किताब न खरीदे और टोल फ्री नंबर जारी करें कि यदि स्कूल प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें खरीदने पर बाध्य करते हैं तो उसकी सूचना उस टोल फ्री नंबर पर दी जाए और शिकायत का तत्काल समाधान किया जाए। शिक्षा विभाग का तंज है कि हम तो अभिभावकों के हित में कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं। मगर अभिभावक सामने तो आए जबकि हकीकत यह है कि अभिभावक तो तैयार हैं मगर वे अपना दुखड़ा किससे रोए? क्या उस शिक्षा विभाग से जिसके स्कूल में जाने से पहले ही स्कूलों के प्रबंधकों को पता चल जाता है कि निरीक्षण होने जा रहा है। लिहाजा समय रहते प्राइवेट किताबें हटवा दी जाती हैं। सरकार ने बच्चों के कंधों से किताबों का बोझ हल्का करने के लिए 2020 में एक योजना बनाई थी जिसके तहत बच्चे के बैग में उसके वजन के 10% भार के बराबर ही किताबें होंगी। सरकार की यह योजना आज तक लागू नहीं हुई और हालात ये हैं कि प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों से भरे बच्चों के बैग को बच्चे तो क्या उनके अभिभावक तक नहीं उठा पा रहे हैं। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री को इस संदर्भ में तत्काल संज्ञान लेना चाहिए वरना यही कहा जाएगा कि भगवान ही मालिक है इस देवभूमि के भावी भविष्य का।


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