सर्विस ट्रिब्युनल ने अवैध मानते हुये निरस्त किये एसएसपी व आईजी के 3-3 आदेश

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सर्विस ट्रिब्युनल ने अवैध मानते हुये निरस्त किये एसएसपी व आईजी के 3-3 आदेश

सब इंस्पेक्टर व कांस्टेबिलों के विरूद्ध एसपी की जांच को भी माना आपत्तिजनक व विधि विरूद्ध

स्थानांतरण को विधायक से सिफारिश कराने का आरोप लगाकर किया गया था 3 पुलिस कर्मियों को दण्डित

देहरादून। उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सेवा सम्बन्धी मामलों का निर्णय करने वाले विशेष न्यायालय (ट्रिब्युनल) की नैनीताल पीठ ने एसएसपी उधमसिंहनगर तथा आईजी कुमाऊं नैनीताल के पुलिस सब इंस्पैक्टर सुरेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट तथा कांस्टेबिल दयाल गिरी व महिला कांस्टेबिल हेमा मनराल के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही में दिये गये 3-3 दण्ड आदेशों को निरस्त कर दिया। ट्रिब्युनल वाइस चैयरमैन (ज्यूडिशियल) राजेन्द्र सिंह की बेंच ने इन पुलिस कर्मियों की याचिकाओं पर एसएसपी के आदेश को पुलिस अधीक्षक नगर रूद्रपुर की आपत्तिजनक व विधि विरूद्ध जांच पर आधारित मामते हुये तथा आईजी के अपील आदेशों को निरस्त किया है। वर्तमान में उधमसिंहनगर जिले में तैनात सब इंस्पेक्टर सुरेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट तथा कांस्टेबल दयाल गिरी तथा नैनीताल जिले में तैनात महिला कांस्टेबिल हेमा मनराल की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल बेेंच में तीन याचिकायें 140,146 व 147 सन् 2023 दायर की थी। इसमें कहा गया था कि वर्ष 2021 में जब यह पुलिस कर्मी उधमसिंहनगर जिले में तैनात थे तो डा. प्रेम सिंह राणा, विधायक नानकमत्ता, उधमसिंहनगर के तथाकथित पत्र दिनांक 07 जून 2021 की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें याचीगण सहित विभिन्न पुलिस कर्मियों की सूची दी गयी थी। इस पर एसएसपी उधमसिंहनगर द्वारा जन प्रतिनिधियों से स्थानांतरण के सम्बन्ध में सिफारिश कराकर कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन करने वाले कर्मियों के विरूद्ध जांच कर आख्या उपलब्ध कराने को पुलिस अधीक्षक, नगर रूद्रपुर को आदेशित किया। उन्होंने अपनी जांच आख्या दिनांक 25 अगस्त 2021 में बिना स्वतंत्र साक्ष्यों तथा याचीगण के पक्षों को विचार मे लिये बिना किसी सम्बद्ध कारण को उल्लेखित किये, बिना किसी वैध आधार के याचीगण सहित विधायक के तथाकथित पक्ष में दी गयी सूची में शामिल सभी कर्मियों को दोषी होने का निष्कर्ष दे दिया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने इस जांच आख्या को आधार बनाते हुए अपने तीन आदेशों दिनांक 15 मार्च 2022 से तीनों पुलिस कर्मियों की 2021 की चरित्र पंजिका में परिनिन्दा प्रविष्टि अंकित करने के दण्ड का आदेश दे दिया। पुलिस कर्मियों द्वारा इसकी अपील आईजी कुमाऊं परिक्षेत्र नैनीताल को की गयी लेकिन उन्होंने भी अपील पर निष्पक्ष रूप से विचार किये बगैर अपने 5 मई 2023 तथा 24 जुलाई 2023 से तीन अपील आदेशों से अपीलों को निरस्त कर दिया। इस पर इन पुलिस कर्मियों द्वारा अपने अधिवक्ता नदीम उद्दीन के माध्यम से उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल पीठ में दावा याचिकायें दायर की गयी। याचिकाओं में विभागीय दण्ड आदेशों व अपील आदेशों को निरस्त करने तथा उसके आधार पर रूके सेवा लाभों को दिलाने का निवेदन किया गया। याचिका कर्ताओं की ओर से नदीम उद्दीन ने विभागीय जांच, दण्ड आदेशों व अपील आदेश को निराधार तथा प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर निरस्त होने योेग्य बताया। पुलिस विभाग की ओर से सहायक प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नेे आदेशों को सही तथा कानून के अनुसार होना बताया। अधिकरण के उपाध्यक्ष (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह की पीठ ने श्री नदीम के तर्कों से सहमत होते हुए पुलिस अधीक्षक नगर रूद्रपुर की जांच को आपत्तिजनक तथा विधि विरूद्ध माना और इसके आधार पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर द्वारा विवेक का इस्तेमाल किये बिना जांच अधिकारी की काल्पनिक जांच रिपोर्ट के आधार पर दण्डित करने को प्राकृतिक न्याय एवं विधि विरूद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया तथा आईजी कुमाऊं के अपील आदेशों को भी निरस्त होने योग्य मानते हुए निरस्त कर दिया। इसके साथ ही एसएसपी तथा आईजी को आदेश दिया गया कि वह याचीगण की चरित्र पंजिका व अन्य अभिलेखों में दर्ज परिनिन्दा प्रविष्टि को 30 दिन के अन्दर विलुप्त करें। उपाध्याय (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जांच के दौरान बयानात में स्पष्ट स्वीकार किया गया है कि अपने स्थानांतरण के सम्बन्ध में कोई सिफारिश व वार्ता विधायक से नहीं की गयी है और न ही फोन कराया गया। विधायक ने भी जांच अधिकारी से फोन पर वार्ता करने पर पुलिस के स्थानांतरण के सम्बन्ध में कोई पुलिस कर्मचारी उनके पास आया नहीं बताया गया और न ही उनको फोन किया जाना कहा गया। ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी द्वारा संभावना के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से विधायक नानकमत्ता द्वारा याचीगण द्वारा अपने स्थानांतरण के सम्बन्ध में काल्पनिक रूप से सम्पर्क करना पाते हुए दोषी ठहराया गया है जो पूरी तरह पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य एवं विधि के विपरीत है।


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