प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष: बाघों की संख्या 268 से बढ़कर 3167 हुई

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नई दिल्ली। प्रोजेक्ट टाइगर एक बाघ संरक्षण परियोजना है, जिसकी शुरुआत 1 अप्रैल 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत भारत के प्रथम राष्ट्रीय उद्यान, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की ढिकाला रेंज से की गई थी।
29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। वन्य जीव जंतुओं में बाघ प्रमुख प्रजातियों में से एक है। 1973 में, अधिकारियों ने पाया कि शताब्दी के आरम्भ में बाघों की आबादी अनुमानित 5,000 से घटकर 268 हो गई है। बाघों की आबादी के लिए कई बड़े संकट हैं जैसे व्यापार के लिए अवैध शिकार, संकुचित आवास, शिकार आधार प्रजातियों की कमी, बढ़ती मानव आबादी, आदि। बाघ की खाल का व्यापार और चीनी पारंपरिक दवाओं में उनकी हड्डियों के उपयोग ने, विशेष रूप से एशियाई देशों में बाघों की आबादी को विलुप्ति के कगार पर ला कर छोड़ दिया। चूँकि भारत और नेपाल दुनिया में बाघों की लगभग दो-तिहाई आबादी को आवास प्रदान करते हैं, इसलिए ये दोनों राष्ट्र अवैध शिकार और अवैध व्यापार के प्रमुख लक्ष्य बन गए। बाघ परियोजना, दुनिया में अच्छी तरह से प्रचारित वन्यजीव अभियानों में से एक है। बाघ संरक्षण को केवल एक लुप्तप्राय प्रजाति को बचाने के प्रयास के रूप में ही नहीं, बल्कि बड़े परिमाण के जैव-प्रजातियों को संरक्षित करने के साधन के रूप में समान महत्व के साथ देखा गया है। भारत में कुल 54 टाइगर रिज़र्व हैं। उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान, असम में मानस राष्ट्रीय उद्यान और केरल में पेरियार राष्ट्रीय उद्यान भारत के कुछ सबसे लोकप्रिय बाघ अभयारण्य हैं।
1973 में जहाँ बाघों की संख्या घटकर केवल 268 रह गयी थी, आज प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने पर यह संख्या 3167 हो गयी है।
वन विभाग द्वारा कड़ी मेहनत, सुरक्षा और जागरूकता फैलाने के फल स्वरूप ही बाघ संरक्षण और उनकी संख्या को बढ़ाने में सफलता प्राप्त हुई है।

यह चित्र रुद्रपुर निवासी वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ष्रूपेश अरोराष् द्वारा जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में लिया गया है।

-रूपेश अरोरा
(रुद्रपुर निवासी वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर)


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