उत्तर भारत के ऐतिहासिक चैती मेले में दूरदराज से आए दुकानदारों की दुकाने लगने का क्रम जारी

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उत्तर भारत के ऐतिहासिक चैती मेले में दूरदराज से आए दुकानदारों की दुकाने लगने का क्रम जारी

काशीपुर। उत्तर भारत के ऐतिहासिक चैती मेले में स्थानीय व दूरदराज के दुकानदारों द्वारा अपनी विभिन्न प्रकार की दुकानें लगाए जाने का क्रम जारी है। हालांकि, बदलता मौसम उनकी परेशानी बढ़ा रहा है। चैत्र नवरात्र में लगने वाले चैती मेले में हजारों हजार श्रृद्धालु मां बालसुन्दरी देवी को प्रसाद चढ़ाने आते हैं।
माँ बालसुन्दरी देवी के विषय में जनविश्वास है कि इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है वह अवश्य पूरी होती है। फिर भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का समूह उमड़ पड़ता है। मां बालसुन्दरी देवी के अतिरिक्त यहाँ श्री मोटेश्वर महादेव मंदिर में भी पूजा-अर्चना कर मनौतियां मांगी जाती हैं। इससे पूर्व दढ़ियाल रोड स्थित श्री खोखरा देवी मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की प्राचीन परम्परा है, जो आज भी चली आ रही है। चैती चौराहा स्थित भगवती ललिता देवी मंदिर व मेला परिसर के बाहर स्थित बूजपुर वाली देवी के मंदिर में भी प्रसाद चढ़ाया जाता है। यहां बता दें कि मां बालसुन्दरी देवी का स्थाई मंदिर नगर के मौहल्ला पक्काकोट में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के यहां है। अग्निहोत्री ब्राह्मणों को चंदवंशीय राजाओं से यह भूमि दान में प्राप्त हुई थी। बाद में इस भूमि पर मां बालसुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया। बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती है ।
कहा जाता है कि आज जो लोग इस मन्दिर के पंडा हैं, उनके पूर्वज मुगलकाल में यहां आये थे। उन्होंने ही इस स्थान पर मां बालसुन्दरी के मन्दिर की
स्थापना की। कहा जाता है कि तत्कालीन मुगल बादशाह ने भी इस मंदिर को बनाने में सहायता दी थी। थारु समाज की तो मां बालसुन्दरी देवी में बहुत ज्यादा आस्था है । थारुओं के नवविवाहित जोड़े हर हाल में मां से आशीर्वाद लेने चैती मेला पहुंचते हैं।
प्राय: चैती मेले में रौनक तभी से आनी शुरु होती है जब काशीपुर से मां बालसुन्दरी देवी का डोला चैती मेला स्थित मंदिर भवन में पहुँचता है। डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है। मौहल्ला पक्काकोट से चैती मेला पहुंचने तक स्थान-स्थान पर श्रद्धालु मां बालसुन्दरी देवी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते है। इस बार मां बालसुन्दरी देवी का डोला 29 मार्च की तड़के अष्टमी को चैती मेला स्थित मंदिर भवन पहुंचेगा। इसे लेकर पंडा परिवार जहां तैयारी में जुटा है, वहीं प्रशासन भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम की रूपरेखा बना रहा है। बहरहाल,16 अप्रैल तक चलने वाले चैती मेले में दुकानें लगने का क्रम जारी है।


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One thought on “उत्तर भारत के ऐतिहासिक चैती मेले में दूरदराज से आए दुकानदारों की दुकाने लगने का क्रम जारी

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